बस हो गई है कैप्टन की, तरस आ रहा है उसकी बुद्धि पर, भूल चुके हैं गांधी जी के विचार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से लुधियाना दौरे के दौरान चरखा कातने की निंदा करने वाले कांग्रेसी अपनी मां पार्टी की विचारधारा के मोल और महात्मा गांधी की कदर व कीमत का मज़ाक बना रहे हैं। मुझे कैप्टन अमरिंदर सिंह व उनके कुछ साथियों की बुद्धि पर तरस आ रहा है। कैप्टन के इस बयान से लगता है कि पंजाबी की यह कहावत उन पर पूरी फिट बैठती है कि उम्र हुई सत्तर ,गया बूढ़ा बहत्तर। श्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिप्पणी करने वाले यह भी नहीं जानते कि चरखा कातने को पिछडनेपन की निशानी बता कर उसी विचारधारा की बेअदबी की है, जिस पर चलने का कांग्रेस लीडऱशिप दावा करती आ रही है। प्रधानमंत्री द्वारा चरखा कातने को 50 साल पिछड़ापन कह कर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उन हज़ारों देशभक्तों की भी बेइज़ती की है, जिन्होनें महात्मा गांधी के चरखे को त्याग और कुर्बानी का प्रतीक मानते हुए जंग-ए-आजादी में कूदे गए थे। यह बयान देश में चरखा कातकर अपने परिवार पालने वालों और खादी व कपड़ा लघु उद्योग में अपना योगदान देने वाले करोड़ों महिलाओं के साथ कड़वा मज़ाक है। प्रधानमंत्री की ओर से चरखा कातने का अर्थ कैप्टन अमरिंदर सिंह की बूढ़ी सोच को समझ नहीं आ सकता क्योंकि वह महात्मा गांधी की विचारधारा को छिक्के पर टांग चुके हैं। असल में प्रधानमंत्री ने चरखा कातकर देश को विकास के साथ-साथ अपने जड़ों के साथ जोडक़र छोटे-छोटे पुरातन हथकरघा कार्य की शान को फिर से बहाल किया है। जिसका मकसद कतार में खड़े आखिरी व्यक्ति को देश की तरक्की में भागीदार बनाना है, जिसको कांग्रेसी सरकारों ने आज़ादी के बाद आंखों से दूर कर रखा है।
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