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Saturday, February 9, 2013

जब दलित-पिछड़ा कोई काम करता है


उदित राज॥

जब दलित-पिछड़ा कोई काम करता है तो उसे खराब नजरों से देखा जाता है। कार्यों का मापदंड सवर्णों ने ही बनाया है। जो मान्यताएं, धंधे व काम सवर्णों के हित साधते हैं, उन्हें श्रेष्ठ और सम्मानजनक बताया गया और जो कार्य उनकी क्षमता से बाहर थे, उन्हें धर्म विरोधी ठहरा दिया गया। आज तक यह सोच कायम है। पहले नृत्य, संगीत, गायन, नाटक और चित्रकला आदि पर दलितों और पिछड़ों का वर्चस्व हुआ करता था। सवर्ण इन कलाओं को घृणा की दृष्टि से देखते थे। वे इनसे जुड़े कलाकारों को नचनिया, गवैया, भांड, ढोलबाज, नट आदि कहकर अपमानित करते थे। कलाकारों को भिखारियों का दर्जा दिया गया, लेकिन शहरी सभ्यता विकसित होने के कारण इनका भी सवर्णीकरण हुआ। सवर्णों ने इन्हें अपनी मौलिक कला बताकर पूरे विश्व मंे वाहवाही लूटी। अब इन कलाओं को सिखाने के लिए बड़े-बड़े शहरों में संस्थान, सांस्कृतिक केंद्र, कला मंडल और अकादमी स्थापित हो गए हैं, जिन पर सवर्णों का कब्जा हो गया है।

शूद्र देवदासियों को तो आज भी नफरत से देखा जाता है लेकिन सचाई यह है कि उन्होंने ही नृत्य और संगीत को बचाया। समय ने करवट ली और फिल्मों के जरिए ये कलाएं लोकप्रिय हो गईं। एक समय में दलित-आदिवासी गांव के खुली चौपाल में नाचा-गाया करते थे। उस समय उन्हें हेय समझा जाता था लेकिन आज उसी कला पर टीवी पर राष्ट्रीय प्रतियोगिता हो रही है।

आजादी के बाद लगभग तीन दशकों तक दलितों एवं पिछड़ों की भागीदारी राजनीति में नहीं के बराबर रही। यदि आरक्षण की वजह से लोग चुनकर आए भी तो उनमें से ज्यादातर गूंगे-बहरे की भूमिका निभाते रहे। पहले राजनीति सबसे अच्छा क्षेत्र माना जाता था। स्कूल में अध्यापक बच्चों से पूछते थे कि बड़े होकर क्या बनोगे, तो उन्हें सिखाते थे कि कहो नेहरू चाचा बनेंगे। समय के अनुसार परिस्थिति बदली है और ज्यादातर प्रांतों में जब सत्ता पिछड़ों के हाथ में आई है तो अब राजनीति को ही गंदा कहा जा रहा है। सरकारी नौकरियों में आरक्षण की वजह से दलितों एवं पिछड़ों की भागीदारी बढ़ी है तो सारा सरकारी कामकाज ही भ्रष्ट और निकम्मा दिखने लगा है। हर तरफ से आवाज उठती है कि सरकारी विभाग भ्रष्ट और निकम्मे हो गए हैं और निजीकरण ही एक उपाय है। निजीकरण होने से सवर्णों का दबदबा फिर से हो जाएगा। शिक्षा का निजीकरण हुआ जिसमंे आधिपत्य सवर्णों का है। आज यह क्षेत्र लाभ कमाने में सबसे आगे हो गया है लेकिन क्यों नहीं इसे बदनाम किया जाता? आजादी के पहले जब सवर्णों ने ही सरकारी नौकरियों में आधिपत्य जमाया तो उन्हें गद्दार क्यों नहीं कहा गया?

आजादी के बाद देश का शासन-प्रशासन सवर्णों के ही हाथ रहा है तो इस तरह से सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक बुनियाद की नींवउन्होंने ही डाली। भ्रष्टाचार कुछ महीनों में ही जन्म नहीं लेता है। इसे जड़ जमाने में कई वर्ष लगते हैं। नि:संदेह आज आर्थिक भ्रष्टाचार बढ़ गयाहै लेकिन इसके लिए आज के राजनेता एवं नौकरशाह उतने जिम्मेदार नहीं हैं जितने कि शुरुआती दौर वाले। जैसी बुनियाद होती है वैसे हीघर की दीवारें और छत तैयार होती हैं और यह समझना कोई मुश्किल का काम नहीं है।

समाजशास्त्री आशीष नंदी ने यही बात कही। उन्होंने कहा कि अब दलित, पिछड़े और आदिवासी ज्यादा भ्रष्ट हो रहे हैं। उन्होंेने यह नहीं कहाकि भ्रष्टाचार की बुनियाद दलितों-पिछड़ों ने डाली है। सच पूछिए तो सवर्णों के मुकाबले आज भी ये भ्रष्टाचार में बहुत पीछे हैं। पिछले वर्ष 17भारतीयों के नंबर दो के खाते विदेश में मिले और सरकार ने इनका खुलासा किया। लेकिन उनमें से एक भी दलित-आदिवासी नहीं है। लाखोंकरोड़ का काला धन बाहर जमा हुआ है। यह कहा जा सकता है कि दलित-आदिवासी तो उसमें शामिल ही नहीं होंगे। हो सकता है कि कुछपिछड़ें हों, लेकिन जितनी बड़ी उनकी आबादी है उसके अनुपात में उनकी संख्या नगण्य ही होगी। यह भी देन उसी भ्रष्टाचार संस्कृति की हैजिन्होंने इसको पनपाया। आशीष नंदी ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के तरीके अलग-अलग हैं। सिफारिश से कोई व्यक्ति अपने औलाद कादाखिला हार्वर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका में करा देता है तो उसे भ्रष्टाचार नहीं माना जाता। सवर्णों के भ्रष्टाचार पकड़ में नहीं आते क्योंकि उन्हेंतमाम तरीके मालूम हैं। जेएमएम घूस कांड मंे जो दलित-आदिवासी समाज के सांसद थे, उन्हें भ्रष्टाचार करना नहीं आता था और जो नगदपैसा उन्हें मिला उसे सीधे उन्होंने बैंक में जमा कर दिया और पकड़ लिए गए। चालाक लोग हजारों करोड़ रिश्वत लेकर भी पकड़ में नहींआते। कावेरी गैस में 44000 करोड़ रुपए का घोटाला है। कोई उस पर उंगली नहीं उठा रहा है। कॉमनवेल्थ गेम्स या कोल आवंटन घोटालेमें दलित-आदिवासी तो नहीं शामिल हैं फिर भी इन्हीं को ज्यादा भ्रष्ट कहा जा रहा है। आशीष नंदी के बयान को एक अवसर के रूप में भीलिया जा सकता है कि जैसे दिल्ली गैंगरेप पर देश में बहस चली उसी तरह से अब बहस चले कि कौन सी जाति ज्यादा भ्रष्ट है तो असलियतसामने आ जाएगी।

जब थाने की दलाली निम्न वर्ग के लोग करते हैं तो एक बड़ी चर्चा हो जाती है कि ये लोग दलाल और भ्रष्ट हैं और जब वही काम सवर्ण करें तोमाना जाता है कि उनकी पहुंच लंबी है और उसी की वजह से राहत मिली। भ्रष्टाचार के अलग-अलग ये पैमाने क्यों है उसको समझने के लिएसमाज की मानसिकता को जानना होगा। जिन क्षेत्रों में दलित-आदिवासी एवं पिछड़े नहीं हैं उन्हें अभी भी पवित्र गाय माना जाता है। सबसेज्यादा भ्रष्टाचार इस समय कहीं है तो वह है कॉरपोरेट हाउसेज में, लेकिन वह लोगों की नजरों मंे नहीं आता क्योंकि उसमें निम्न जातियों कीभागीदारी नहीं है।

हाई जुडिशरी के करप्शन को कौन नहीं जानता लेकिन उनमें बहुत ही कम भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं। जिस दिन उसमें दलितों,आदिवासियों की भागीदारी होगी तो जिस तरह से नौकरशाही और राजनीति बदनाम हुई है वही हश्र इसका होगा। अब सेना में भी भ्रष्टाचारबहुत बढ़ गया है लेकिन लोगांे को दिखता नहीं है। मीडिया अभी भी पवित्र गाय मानी जाती है वहां का भ्रष्टाचार लोगांे को नहीं दिखता औरऐसा इसलिए है कि उसमें दलित- आदिवासी की भागीदारी शून्य है। जिस दिन धार्मिक प्रतिष्ठानों मंे इनकी भागीदारी हो गई तो उस दिन वहांभी भ्रष्टाचार दिखने लगेगा जहां कि आस्था के नाम पर सब कुछ हो रहा है।

(लेखक इंडियन जस्टिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)



वैलेंटाइन डे की कहानी::

वैलेंटाइन डे की कहानी::
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यूरोप (और अमेरिका) का समाज जो है वो रखैलों (Kept) में विश्वास करता है पत्नियों में नहीं, यूरोप और अमेरिका में आपको शायद ही ऐसा कोई पुरुष या मिहला मिले जिसकी एक शादी हुई हो, जिनका एक पुरुष से या एक स्त्री से सम्बन्ध रहा हो और ये एक दो नहीं हजारों साल की परम्परा है उनके यहाँ | आपने एक शब्द सुना होगा "Live in Relationship" ये शब्द आज कल हमारे
देश में भी नव-अिभजात्य वगर् में चल रहा है, इसका मतलब होता है कि "बिना शादी के पती-पत्नी की तरह से रहना" | तो उनके यहाँ, मतलब यूरोप और अमेरिका में ये परंपरा आज भी चलती है,खुद प्लेटो (एक यूरोपीय दार्शनिक) का एक स्त्री से सम्बन्ध नहीं रहा, प्लेटो ने लिखा है कि "मेरा 20-22 स्त्रीयों से सम्बन्ध रहा है" अरस्तु भी यही कहता है, देकातेर् भी यही कहता है, और रूसो ने तो अपनी आत्मकथा में लिखा है कि "एक स्त्री के साथ रहना, ये तो कभी संभव ही नहीं हो सकता, It's Highly Impossible" | तो वहां एक पत्नि जैसा कुछ होता नहीं | और इन सभी महान दार्शनिकों का तो कहना है कि "स्त्री में तो आत्मा ही नहीं होती" "स्त्री तो मेज और कुर्सी के समान हैं, जब पुराने से मन भर गया तो पुराना हटा के नया ले आये " | तो बीच-बीच में यूरोप में कुछ-कुछ ऐसे लोग निकले जिन्होंने इन बातों का विरोध किया और इन रहन-सहन की व्यवस्थाओं पर कड़ी टिप्पणी की | उन कुछ लोगों में से एक ऐसे ही यूरोपियन व्यक्ति थे जो आज से लगभग 1500 साल पहले पैदा हुए, उनका नाम था - वैलेंटाइन | और ये कहानी है 478 AD (after death) की, यानि ईशा की मृत्यु के बाद |

उस वैलेंटाइन नाम के महापुरुष का कहना था कि "हम लोग (यूरोप के लोग) जो शारीरिक सम्बन्ध रखते हैं कुत्तों की तरह से, जानवरों की तरह से, ये अच्छा नहीं है, इससे सेक्स-जनित रोग (veneral disease) होते हैं, इनको सुधारो, एक पति-एक पत्नी के साथ रहो, विवाह कर के रहो, शारीरिक संबंधो को उसके बाद ही शुरू करो" ऐसी-ऐसी बातें वो करते थे और वो वैलेंटाइन महाशय उन सभी लोगों को ये सब सिखाते थे, बताते थे, जो उनके पास आते थे, रोज उनका भाषण यही चलता था रोम में घूम-घूम कर | संयोग से वो चर्च के पादरी हो गए तो चर्च में आने वाले हर व्यक्ति को यही बताते थे, तो लोग उनसे पूछते थे कि ये वायरस आप में कहाँ से घुस गया, ये तो हमारे यूरोप में कहीं नहीं है, तो वो कहते थे कि "आजकल मैं भारतीय सभ्यता और दशर्न का अध्ययन कर रहा हूँ, और मुझे लगता है कि वो परफेक्ट है, और इसिलए मैं चाहता हूँ कि आप लोग इसे मानो", तो कुछ लोग उनकी बात को मानते थे, तो जो लोग उनकी बात को मानते थे, उनकी शादियाँ वो चर्च में कराते थे और एक-दो नहीं उन्होंने सैकड़ों शादियाँ करवाई थी |

जिस समय वैलेंटाइन हुए, उस समय रोम का राजा था क्लौड़ीयस, क्लौड़ीयस ने कहा कि "ये जो आदमी है-वैलेंटाइन, ये हमारे यूरोप की परंपरा को बिगाड़ रहा है, हम बिना शादी के रहने वाले लोग हैं, मौज-मजे में डूबे रहने वाले लोग हैं, और ये शादियाँ करवाता फ़िर रहा है, ये तो अपसंस्कृति फैला रहा है, हमारी संस्कृति को नष्ट कर रहा है", तो क्लौड़ीयस ने आदेश दिया कि "जाओ वैलेंटाइन को पकड़ के लाओ ", तो उसके सैनिक वैलेंटाइन को पकड़ के ले आये | क्लौड़ीयस नेवैलेंटाइन से कहा कि "ये तुम क्या गलत काम कर रहे हो ? तुम अधमर् फैला रहे हो, अपसंस्कृति ला रहे हो" तो वैलेंटाइन ने कहा कि "मुझे लगता है कि ये ठीक है" , क्लौड़ीयस ने उसकी एक बात न सुनी और उसने वैलेंटाइन को फाँसी की सजा दे दी, आरोप क्या था कि वो बच्चों की शादियाँ कराते थे, मतलब शादी करना जुर्म था | क्लौड़ीयस ने उन सभी बच्चों को बुलाया, जिनकी शादी वैलेंटाइन ने करवाई थी और उन सभी के सामने वैलेंटाइन को 14 फ़रवरी 498 ईःवी को फाँसी दे दिया गया |

पता नहीं आप में से कितने लोगों को मालूम है कि पूरे यूरोप में 1950 ईःवी तक खुले मैदान में, सावर्जानिक तौर पर फाँसी देने की परंपरा थी | तो जिन बच्चों ने वैलेंटाइन के कहने पर शादी की थी वो बहुत दुखी हुए और उन सब ने उस वैलेंटाइन की दुखद याद में 14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे मनाना शुरू किया तो उस दिन से यूरोप में वैलेंटाइन डे
मनाया जाता है | मतलब ये हुआ कि वैलेंटाइन, जो कि यूरोप में शादियाँ करवाते फ़िरते थे, चूकी राजा ने उनको फाँसी की सजा दे दी, तो उनकी याद में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है | ये था वैलेंटाइन डे का इतिहास और इसके पीछे का आधार |


अब यही वैलेंटाइन डे भारत आ गया है जहाँ शादी होना एकदम सामान्य बात है यहाँ तो कोई बिना शादी के घूमता हो तो अद्भुत या अचरज लगे लेकिन यूरोप में शादी होना ही सबसे असामान्य बात है | अब ये वैलेंटाइन डे हमारे स्कूलों में कॉलजों में आ गया है और बड़े धूम-धाम से मनाया जा रहा है और हमारे यहाँ के लड़के-लड़िकयां बिना सोचे-समझे एक दुसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं | और जो कार्ड होता है उसमे लिखा होता है " Would You Be My Valentine" जिसका मतलब होता है "क्या आप मुझसे शादी करेंगे" | मतलब तो किसी को मालूम होता नहीं है, वो समझते हैं कि जिससे हम प्यार करते हैं उन्हें ये कार्ड देना चाहिए तो वो इसी कार्ड को अपने मम्मी-पापा को भी दे देते हैं, दादा-दादी को भी दे देते हैं और एक दो नहीं दस-बीस लोगों को ये
ही कार्ड वो दे देते हैं | और इस धंधे में बड़ी-बड़ी कंपिनयाँ लग गयी हैं जिनको कार्ड बेचना है, जिनको गिफ्ट बेचना है, जिनको चाकलेट बेचनी हैं और टेलीविजन चैनल वालों ने इसका धुआधार प्रचार कर दिया | ये सब लिखने के पीछे का उद्देँशय यही है कि नक़ल आप करें तो उसमे अकल भी लगा लिया करें | उनके यहाँ साधारणतया शादियाँ नहीं होती है और जो शादी करते हैं वो वैलेंटाइन डे मनाते हैं लेकिन हम भारत में क्यों ?

आज इस कांग्रेस के ९८% नेता कभी न कभी लात मारकर कांग्रेस से भगाए गए है और आज कई मंत्री बने बैठे हैं

आज इस कांग्रेस के ९८% नेता कभी न कभी लात मारकर कांग्रेस से भगाए गए है और आज कई मंत्री बने बैठे हैं ---

१- कपिल सिब्बल - कभी लालू यादव की पार्टी से राज्यसभा सांसद थे .. ये दिल्ली मे नारे लगाते थे गली गली मे शोर है राजीव गाँधी चोर है |

२- प्रणव मुखर्जी -- कभी राजीव गाँधी को भ्रष्ट और तानाशाह कहा था पार्टी ने लात मारकर भगा दिया था फिर इन्होने अपनी खुद की दुकान खोली थी |
...
३- पी चिदाम्बरम -- कभी जनता दल मे थे फिर कांग्रेस मे गए फिर जी.के. मूपनार के साथ मिलकर तमिल मनीला कांग्रेस बनाई और राजीव सोनिया को दुनिया का सबसे भ्रष्ट इंसान बोला था |

४- रेणुका चौधरी - कांग्रेस से तीन बार भगाई जा चुकी है | कभी चन्द्र बाबू है नायडू के साथ रही और उस समय टीवी डिबेट पर तेलगु देशम की तरफ से कांग्रेस के प्रवक्ताओ से बकायदा हाथापाई पर उतर आती थी | आज कांग्रेस की प्रवक्ता हैं |

५- जयपाल रेड्डी -- बीपी सिंह के निकट सहयोगी ,, सारी उम्र कांग्रेस को गाली देते रहे .. आज उसी कांग्रेस मे केबिनेट मंत्री है |

६- सुबोधकांत सहाय -- ये भी बीपी सिंह, फिर चंद्रशेखर के साथ रहे .. सारी उम्र कांग्रेस को गाली देते रहे .. आज केबिनेट मंत्री है |

७- पवन कुमार बंसल - तीन बार कांग्रेस छोड़ चुके थे आज मंत्री है

८- बेनी प्रशाद बर्मा -- सारी उम्र मुलायम के साथ कांग्रेस से लड़ते रहे... कांग्रेस को भ्रस्तो की जमात कहते थे आज उसी कांग्रेस की गोद मे बैठकर मंत्री है |

९- रीता बहुगुणा जोशी -- तीन पार्टी बदल चुकी . सपा मे रही और सोनिया को विदेशी ताकतों का एजेंट कहती थी आज फिर कांग्रेस मे है |

मित्रों, ऐसे कांग्रेस मे सैकडो नाम है .. लेकिन नीच मीडिया इसे नही बताती .. क्योकि उसे मैडम से चबाने ले लिए हर रोज हड्डी चाहिए |और कांग्रेस भी उन्हें ही धोने को मजबूर है क्योंकि इसकी "विदेशी अम्मा" को पैसा चाहिए जो इन्हीं लोगों से कमाया जा सकता है |

क्योंकि भाई जो हराम का खा रहे हैं |
वही तो कांग्रेस के गुण गा रहे हैं ||